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भारत और वियतनाम के मध्य स्त्रातेजिक और रक्षा भागीदारी

IFPP Graphic | Hindi 1 by Ajitesh India Vietnam

(Strategic and Defense Partnership between India and Vietnam)

Note from the Chair: This is IFPP's first short piece in Hindi, an inceptive effort to provide accessibility to non-English speaking Indians. We congratulate Mr Ankit Kumar Shukla, who is a Ph.D. scholar at the University of Allahabad, for writing our first Hindi publication.

यह IFPP का हिंदी में पहला लघु आलेख है, जो गैर-अंग्रेजी भाषी भारतीयों को पहुंच प्रदान करने का एक प्रारंभिक प्रयास है। हम श्री अंकित कुमार शुक्ला, जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पीएचडी विद्वान हैं, को हमारा पहला हिंदी प्रकाशन लिखने के लिए बधाई देते हैं।

अंकित कुमार शुक्ला 

समर रिसर्च इंटर्न


भारत और वियतनाम के बीच स्त्रातेजिक भागीदारी और रक्षा समझौता भले ही शीतयुद्धोपरान्त के बदलते हुए राजनीतिक,आर्थिक एवं स्त्रातेजिक समीकरणों के परिणामस्वरुप घटित हुआ हो, परंतु दोनों देशों के बीच संबंधों की पृष्ठभूमि सदियों पुरानी है एशिया के दक्षिण पूर्वी भाग में स्थित इन दोनों देशों की स्वतंत्रता संघर्ष की कहानी एक समान रूप से पश्चिमी साम्राज्यवाद के विरुद्ध एक पीड़ादायी संघर्ष से परिपूर्ण रही है, यद्यपि दोनों देश राजनीतिक विचारधारा और शासन की प्रणाली की दृष्टि से अलग है परंतु फिर भी दोनों के बीच परस्पर समानता और सम्मान के आधार पर आर्थिक- सांस्कृतिक संबंधों की पृष्ठभूमि प्राचीन काल से ही चली रही है यद्यपि दोनों देशों के बीच सरकारी राजनीतिक कूटनीतिक संबंधों की स्थापना 7 जनवरी 1972 को हुई  परंतु पंडित नेहरू ने पश्चिमी साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के विरुद्ध वियतनाम का समर्थन किया और कालांतर में गठित सैन्य गठबंधन सीटो (SEATO: Southeast Asia Treaty Organization 1954) का विरोध किया और इसको वियतनाम के विरुद्ध बताया   1970 के दशक के अंत में कंबोडिया संघर्ष के दौरान भारत ने वियतनाम का समर्थन किया शीत युद्ध की समाप्ति से दो वर्ष पूर्व 1986 में वियतनाम ने अपने यहां OPEN DOOR के नाम से सुधार प्रारंभ किये और 1994 में भारत द्वारालुक ईस्ट पॉलिसीकी घोषणा के साथ दोनों देशों के मध्य कूटनीतिक, राजनीतिक, आर्थिक और स्त्रातेजिक समीकरणों एवं संबंधों को बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त हुआ और वियतनाम ने भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और सुदृढ़ और मजबूत करने का निर्णय लिया  क्योंकि वियतनाम अपने क्षेत्रीय स्त्रातेजिक हितों की रक्षा के लिए भारत को एक विश्वस्त सहयोगी स्वीकार करता है  


स्त्रातेजिक भागीदारी और रक्षा समझौता-

भारत और वियतनाम ने 21वीं शताब्दी में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों को दृष्टिगत रखते हुए इस क्षेत्र में शांति, स्थिरता, विकास और समृद्धि को बनाए रखने के लिए भारत के साथ वर्ष 2007 में स्त्रातेजिक भागीदारी का समझौता किया और इसे 2016 में समग्र स्त्रातेजिक भागीदारी में बदल दिया गया । वियतनाम विश्व के कुल 27 देशों के साथ विशेष संबंध स्थापित किए हैं जिसमें 14 के साथ स्त्रातेजिक भागेदारी और 11 देशों के साथ समग्र स्त्रातेजिक भागेदारी तथा तीन देशों के साथ विशेष संबंधों को स्थापित किया है वियतनाम के साथ स्त्रातेजिक भागीदारी को तीन अलग श्रेणियां में विभक्त किया जा सकता है -

  1. Comprehensive Strategic Partnership
  2. Extensive Strategic
  3. Sectorial Strategic


वियतनाम के साथ परस्पर संबंध स्त्रातेजिक भागीदारी का स्वरूप और तथ्य अलग-अलग देशों के साथ अलग-अलग है परंतु वियतनाम के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री फाम बिन्ह मिन्ह(Pham Binh Minh) ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि  ‘स्त्रातेजिक और समग्र भागीदारी विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को  विकसित करने की महत्वपूर्ण आधारशिला स्थापित करती है जिससे वियतनाम को एक वैश्विक स्तर राष्ट्र निर्माण के लिए अवसर और संसाधन प्रदान करते हैं जिससे केवल दक्षिण पूर्व एशिया बल्कि वैश्विक स्तर पर शांति, स्थिरता और विकास को बनाए रखने में सहायता मिलती है भारत वियतनाम के बीच स्त्रातेजिक भागेदारी परम्परागत मित्रता, परस्पर विश्वास और समझ एक दूसरे के प्रति गहरा विश्वास और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर दोनों के बीच परस्पर सहयोग इत्यादि पर आधारित है यह भागेदारी दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में परस्पर सहयोग को बढ़ावा देने की है परंतु इस भागेदारी के राजनीतिक और रक्षा आयाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है  


राजनीतिक संबंध

शीतयुद्धोपरान्त दोनों देशों के राजनीतिक संबंध बहुत तीव्र गति से आगे बढ़ रहे हैं दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग विशेष रूप से सैन्य और सुरक्षा, उच्च तकनीकी, मानवीय संसाधनों का प्रशिक्षण तथा इस भागेदारी को सुदृढ़ बनाने के लिए आर्थिक, सांस्कृतिक और शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग निरंतर सुदृढ़ हो रहे हैं ।भारत वियतनाम के बीच राजनीतिक, आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक संबंधों में निकटता का एक महत्वपूर्ण आधार दोनों देशों का चीन के साथ सीमा और क्षेत्र सम्बन्धीं विवाद भी है दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में चीन के साथ विवाद और उत्पन्न खतरे की दृष्टि से भारत वियतनाम का एक विश्वस्त मित्र है ।  


इसीलिए भारत और वियतनाम के बीच रक्षा सहयोग समझौता और दोनों सेनाओं के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास प्रशिक्षण और सैन्य उत्पादों के आदान-प्रदान की दिशा में निरंतर प्रयास चल रहा है दोनों देशों के बीच रक्षा के क्षेत्र में विशेष रूप से नौसेना वायु सेवा और प्रक्षेपास्रों के निर्माण और कल पुर्जों के व्यापार की दिशा में भी निरंतर आगे बढ़ रहे हैं भारत वियतनाम को पोतों के निर्माण, सुखोई युद्धक विमानों के संचालन हेतु प्रशिक्षण, पनडुब्बी युद्ध कला संबंधी आवश्यक प्रशिक्षण उपकरणों के क्षेत्र में भी काफी प्रगति हो रही हैजून 2022 में भारत के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह की वियतनाम यात्रा के दौरान, दोनों पक्षों ने "2030 की दिशा में भारत-वियतनाम रक्षा साझेदारी पर एक नया संयुक्त दृष्टिकोण वक्तव्य" तैयार किया और "पारस्परिक रसद समर्थन पर समझौता ज्ञापन" पर हस्ताक्षर किए। हाल ही में भारत ने पहली बार जून 2023 में भारतीय नौसेना के स्वदेश निर्मित इन-सर्विस मिसाइल कोरवेट, आईएनएस किरपान को वियतनाम पीपुल्स नेवी को हस्तांतरित किये गये है जिससे यह प्रतीत हो रहा है कि भारत और वियतनाम के बीच रक्षा संबंध क्षेत्र में काफी प्रगति हो रही है  


निष्कर्ष

एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन का एक महाशक्ति के रूप में उदय और बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए भारत और वियतनाम का पश्चिमी जगत के राष्ट्रों के साथ विभिन्न प्रकार के राजनीतिक एवं स्त्रातेजिक समीकरणों का निर्माण हो रहा है, जो शीत युद्ध काल के समीकरणों का प्रतिरूप प्रतीत होता है भारत सहित दक्षिण पूर्व एशिया के राष्ट्रों के साथ और उनके बीच बढ़ते राजनीतिक,आर्थिक, सामरिक संबंधों के पीछे चीन का भय और इस इस भय निवारण हेतु पश्चिम द्वारा बनाई गई स्त्रातेजी प्रच्छन्न रूप से विद्यमान है अन्यथा यह कम आश्चर्यजनक नहीं है कि जिस अमेरिका के विरुद्ध स्वतंत्रता संघर्ष में 10 वर्षों में 10 लाख वियतनामी सैनिक नागरिक शहीद हुए उस अमेरिका के साथ रक्षा पैक्ट।  

     

इस संदर्भ में लॉर्ड पामर्स्टन का कथन सर्वथा उपयुक्त जान पड़ता है कीअंतरराष्ट्रीय राजनीति में ना कोई स्थाई शत्रु और ना ही मित्र बल्कि सिर्फ अपने हित स्थाई होते हैं ’  इससे यह प्रतीत होता है कि शीत युद्ध अपने यथावत रूप में पुनः जीवित और सक्रिय है स्थान और सदस्य बदल गए हैं |

रेफरेन्सेस :


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6 comments:

  1. बहुत बढ़िया, अंकित

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  2. Very good Ankit. Congratulations. Very good opportunity to Hindi speaking and writing students of Northern India.

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  3. Congratulations!
    behtarin likha hai aapne .
    Excellent work.

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  4. Very nice Ankit. Keep it up

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  5. बहुत बढ़िया अंकित!
    वर्तमान परिपेक्ष्य में प्रासंगिक,
    साधुवाद💐👌

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  6. Congratulations Ankit 🎈👏

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