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हिन्द महासागर क्षेत्र में संघर्ष एंव सहयोग के मौलिक आधार

Indian Ocean Maritime Security by Indian Foreign Policy Project

Note from the Chair: This is IFPP's second short piece in Hindi, an inceptive effort to provide accessibility to non-English speaking Indians. We congratulate Mr Ankit Kumar Shukla, who is a Ph.D. scholar at the University of Allahabad, for writing our second Hindi publication.

यह IFPP का हिंदी में दूसरा लघु आलेख है, जो गैर-अंग्रेजी भाषी भारतीयों को पहुंच प्रदान करने का एक प्रारंभिक प्रयास है। हम श्री अंकित कुमार शुक्ला, जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पीएचडी विद्वान हैं, को हमारा दूसरा हिंदी प्रकाशन लिखने के लिए बधाई देते हैं।

आलेख - अंकित कुमार शुक्ला 

समर रिसर्च इंटर्न


हिंद महासागर अपनी प्राकृतिक, भू-राजनीतिक, भू-स्त्रातेजिक, भूसामरिक तथा भू आर्थिक महत्ता के कारण सदैव आधुनिक विश्व की राजनीति का एक केन्द्र बिन्दु रहा है यदपि हिन्द महासागर प्राचीन काल से ही तटवर्ती राज्यों और लोगों के बीच राजनीतिक, आर्थिक और व्यापारिक एवं वाणिज्यिक गतिविधियों का क्षेत्र रहा है जिसके साक्ष्य सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही प्राप्त होते है।

हिन्द महासागर के वर्तमान स्त्रातेजिक एंव भूराजनीतिक परिदृश्य पर दृष्टिपात किया जाये तो इसकी पृष्ठभूमि पुनर्जागरण काल तक जाती है जब यूरोपीय लोगों के द्वारा विभिन्न सामुद्रिक मार्गो द्वारा पृथ्वी के अन्य भूभागों पर स्थित लोगों के साथ प्रत्यक्ष सम्पर्क और व्यापार की प्रकिया प्रारंभ हुई और इसी के साथ इनके बीच जल, थल, बाजार एंव प्राकृतिक संसाधनो पर नियंत्रण के लिए राजनीतिक, कूटनीतिक एंव सैन्य संघर्ष ने जन्म लिया हिंद महासागर क्षेत्र के भू-आर्थिक कारकों ने यूरोपीय शक्तियों को इस क्षेत्र की ओर आकृष्ट किया और इसी के साथ इस क्षेत्र में यूरोपीय राजनीतिक, आर्थिक और सैनिक धारणा का भी आगमन हुआ   इस प्रकार इतिहास में पहली बार भारतीय उपमहाद्वीप पर नियंत्रण के लिए बाह्य शक्तियों का आगमन सामुद्रिक क्षेत्र की ओर से हुआ यद्यपि इस क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए हुए यूरोपीय शक्तियों के बीच संघर्ष में ब्रिटेन काफी हद तक सफल हुआ और वह भारतीय उपमहाद्वीप सहित इस क्षेत्र के विशाल भूभाग पर नियंत्रण कर लिया, परन्तु दूसरी यूरोपीय शक्तियाँ भी इस क्षेत्र में अपनी राजनीतिक और सैनिक उपस्थित को बनाये रखने में सफल हुई यूरोपीय शक्तियों के बीच हिन्द महासागर क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए हुए संघर्ष के परिणामस्वरूप हिन्द महासागर ब्रिटिश झील और भारतीय उपमहाद्वीप एशिया, अफ्रीका में फैले हुए ब्रितानी उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का एक महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया भारतीय उपमहाद्वीप पर नियंत्रण के लिए बनाई गई ब्रिटिशसुरक्षा परिधि की नीतिऔरसमुद्र पर नियंत्रण की व्यापक नीतिके परिणामस्वरूप भारतीय उपमहाद्वीप विदेशी सत्ता के अधीन होने के बावजूद लगभग 200 वर्षों तक बाह्य आक्रमण से मुक्त रहा इससे यह स्पष्ट होता है कि इस क्षेत्र में स्वतन्त्रता, सुरक्षा और शान्ति का एक प्रमुख आधार जल और थल पर नियंत्रण बनाये रखने की क्षमता और योग्यता पर निर्भर होता है


 जल, थल और वायु पर नियंत्रण के सैध्दांतिक स्वरूप का विकास उसके व्यवहारिक स्वरूप के उपरांत हुआ, जब अमेरिका के सुप्रसिद्ध भू-राजनीतिक विचारक Alfred Thayer Mahan ने 1860 में  अपनी पुस्तक The Influence of Sea Power upon History में समुद्र पर नियंत्रण का सिद्धांत प्रतिपादित किया तथा ब्रिटिश चिन्तक मैकिण्डर ने 1904 में धुरी क्षेत्र सिद्धान्त का प्रतिपादन कर विश्व पर स्थलीय नियंत्रण की एक परिकल्पना प्रस्तुत की तथा  गाइलो डूहेट ने 1921 में अपनी रचना The Command of The Air मेंवायु शक्ति पर नियंत्रणका सिद्धांत प्रतिपादित किया इन चिन्तकों द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों से स्पष्ट होता है कि इस क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए जो संघर्ष यूरोपीय शक्तियों के बीच प्रारंभ हुआ वह आज तक निरन्तर बना हुआ है हिन्द महासागर क्षेत्र अपनी विशिष्टताओं के कारण लगभग 300 वर्षों से संघर्ष और सहयोग का क्षेत्र बना हुआ है इस क्षेत्र में संघर्ष और सहयोग क्षेत्र के कारणों और भारत की भूमिका को स्पष्ट रूप से समझने के लिए कुछ आधार भूत तथ्यों के विश्लेषण की आवश्यकता है जिससे इस क्षेत्र में विभिन्न देशों के साथ भारत के हितों और नीतियों को समझा जा सके- 

  1. हिन्द महासागर की भौगोलिक स्थिति 
  2. हिन्द महासागर की भू-राजनीतिक स्थिति 
  3. हिन्द महासागर का भू-स्त्रातेजिक महत्व
  4. हिन्द महासागर का भू-आर्थिक महत्व



हिन्द महासागर की भौगोलिक स्थिति:- 

 हिन्द महासागर पृथ्वी का एक प्रमुख महासागर है जो भौगोलिक दृष्टि से विश्व के मानचित्र का 14% है और विश्व के क्षेत्रफल का 70,560,000 वर्ग किमी (27,240,000 वर्ग मील) है जो पृथ्वी की सतह पर विद्यमान कुल जल का 19.8% भाग को संचित करता है। इसकी लम्बाई उत्तर से दक्षिण 10460 किलोमीटर और चौड़ाई पूर्व से पश्चिम 9655 किलोमीटर है जिसके तटीय सीमा का विस्तार 66526 किलोमीटर है इस प्रकार से हिन्द महासागर प्रशांत महासागर और अटलांटिक महासागर के उपरांत तीसरा सबसे बड़ा महासागर है जो तीन महाद्वीपों अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया से घिरा होने के कारण विश्व के लिए सदैव आकर्षण का केंद्र बना रहता है तीन ओर से स्थल से घिरे होने के कारण हिन्द महासागर को प्रायः अर्ध महासागर भी कहा जाता है जो वर्ष भर सभी गतिविधियों हेतु खुला रहता है इसके तट पर 51 तटीय स्थल बध्द राष्ट्र स्थित है                                                  

Indian Ocean - WorldAtlas


  इस प्रकार हिन्द महासागर अपनी केन्द्रीय भौगोलिक स्थिति के कारण अन्य महासागरों एंव क्षेत्रों से भिन्न है जहां प्रवेश के निम्न जल मार्ग हैं- 

  1. बाब-एल-मंडेब जलडमरूमध्य- यह हिन्द महासागर का उत्तर-पश्चिमी प्रवेश द्वार है, जो लाल सागर को हिन्द महासागर से जोड़ता है।
  2. स्वेज नहर- यह हिन्द महासागर का उत्तर-पश्चिमी प्रवेश जलमार्ग है जो भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ता है, इस तरह से हिन्द महासागर अटलांटिक महासागर से जुड़ जाता है। 
  3.  होर्मुज जलडमरूमध्य: यह हिन्द महासागर का उत्तर-पश्चिमी प्रवेश द्वार है, जो फारस की खाड़ी को हिंद महासागर से जोड़ता है।
  4. मलक्का जलडमरूमध्य
  5. लोम्बोक जलडमरूमध्य
  6. सुंडा जलडमरूमध्य

                ये तीनों जल मार्ग हिंद महासागर के पूर्वी प्रवेश द्वार है, जो हिंद महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ते है।

https://lh5.googleusercontent.com/6lb7V1iv5va-4AYtgR7w8R68z1yUjftDUHIlSqj8QQYcRkGmfIxYa83V3aABdAfU8B4_cYfA5Z88lfvD4jsevnAr_Gf7jhM_NmyQzSAkn2eiqIFeUaD2afIfcqU6d6yTVmJZ92nd

7. केप ऑफ गुड होप जलडमरूमध्य-यह जलमार्ग अफ्रीका महाद्वीप के दक्षिणी तट पर केप ऑफ गुड होप नामक स्थान पर स्थित हिंद महासागर का दक्षिण-पश्चिमी प्रवेश द्वार है, जहाँ पर अटलांटिक महासागर और  हिंद महासागर आपस में जुड़ते है  

       इन प्रवेश मार्गों के माध्यम से हिंद महासागर विश्व के अन्य महासागरों से जुड़ता है। अर्थात हिन्द महासागर पूर्व से पश्चिम को जोड़ने वाला गलियारा है   



हिन्द महासागर की भू-राजनीतिक स्थिति-

हिन्द महासागर क्षेत्र के भू-राजनीतिक महत्व को ध्यान में रखते हुए अनेक स्त्रातेजिक, राजनीतिक, और कूटनीतिक चिन्तकों ने अपनी रचनाओं में इसका उल्लेख किया है प्रसिद्ध अमेरिकी भू-राजनीतिक विचारक और सामुद्रिक शक्ति की अवधारणा के प्रतिपादक एडमिरल अल्फ्रेड थेयर महान (Admiral Alfred Thayer Mahan) ने कहा था किजो हिन्द महासागर में अपनी सामुद्रिक प्रभुता को स्थापित करने में सफल होगा उसकी विश्व राजनीति में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होगी तथा जो हिंद महासागर पर नियंत्रण करने में सफल होगा वह सम्पूर्ण एशिया को प्रभावित करेगा हिन्द महासागर को सातों महासागर की कुंजी कहा जाता है और विश्व के भाग्य का फैसला इसी के जल पर होगा हिन्द महासागर के भू-राजनीतिक महत्व को दृष्टिगत रखते हुए अनेक विचारक इसे विश्व के गुरुत्वाकर्षण का केन्द्र मानते है इसी प्रकार का मत व्यक्त करते हुए  रॉबर्ट काप्लान (Robert Kaplan) ने लिखा है किहिन्द महासागर विश्व का तीसरा सबसे बड़ा क्षेत्र होने के कारण 21 वीं शताब्दी में विश्व की  चुनौतियों के सन्दर्भ में यह एक केन्द्रीय मंच होगा इस क्षेत्र के बहुधा देश द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद स्वतंत्र हुए तथा इनकी सामाजिक एंव आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय थी।  इन सभी देशों को अपनी स्वतंत्रता प्रगति के लिए पूंजी, तकनीकी और उधोग की आवश्यकता थी इनकी इसी स्थिति का लाभ उठाने के लिए पश्चिम और पूर्वी गुट के सदस्य राष्ट्र इस क्षेत्र के राष्ट्रों को अपने पक्ष में करने के लिए सदैव सक्रिय रहते थे पं नेहरू द्वारा प्रतिपादित गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण करने के बावजूद इस क्षेत्र के राष्ट्र प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में किसी किसी महाशक्ति से जुड़े रहे



हिन्द महासागर का भू-स्त्रातेजिक महत्त्व- 

   द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत शीत युद्ध काल में दोनो गुटों के बीच अविश्वास के कारण सैन्य और परमाणु युद्ध कला की दृष्टि से अपने प्रतिरोध क्षमता को बनाए रखने के लिए हिन्द महासागर की केन्द्रस्थ भू-स्त्रातेजिक स्थिति सैनिक दृष्टि से दोनों गुटों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है   हिन्द महासागर एक ऐसा क्षेत्र है जहां से दक्षिणी गोलार्ध के लगभग सभी देशों की सैनिक गतिविधियों पर नजर और नियंत्रण रखा जा सकता है अन्तरमहाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्रों के विकास से हिन्द महासागर में स्थिति विभिन्न द्वीपों से रूस के पूर्वी एवं दक्षिणी भाग, अफ्रीका, मध्य एशिया, दक्षिणी तथा दक्षिण पूर्व एशिया को सरलता से लक्ष्य बनाया जा सकता है। दूसरी ओर हिन्द महासागर एक ऐसा समुद्र है, जिसमें सर्वाधिक द्वीप है और इन द्वीपों की भौगोलिक स्थिति सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, जिन पर नियंत्रण स्थापित करके सम्पूर्ण तटीय प्रदेशों तथा विश्व व्यापार को भी अवरुद्ध किया जा सकता है, यही कारण है कि विश्व की विभिन्न शक्तियां हिन्द महासागर को अपने अधिकार में लेने के लिए उत्सुक रहती हैं। दोनों महाशक्तियों के बीच परमाणु आयुधों के प्रथम प्रयोग की अनिश्चितता के कारण उत्पन्न अविश्वास के निदान हेतु प्रतिरोधकता की नीति सबसे प्रभावशील स्त्रातेजी बन गयी जिसके परिणामस्वरूप परमाणु आयुधों की विश्वसनीयता, क्षमता और प्रभावकारिता को बनाये रखने के लिए इन्हें जल,थल और वायु में तैनात किया गया परमाणु आयुधों के प्रयोग और तैनाती की दृष्टि से हिन्द महासागर पश्चिम शक्तियों विशेषकर अमेरिका के लिए बहुत ही अनुकूल है क्योकि हिन्द महासागर में स्थित विभिन्न अड्डों, केन्द्रों और परमाणु आयुध सम्पन्न पनडुब्बियों की सहायता से सोवियत संघ और उसके सहायक देशों के विरूद्ध सीधा प्रहार किया जा सकता है इसीलिए हिन्द महासागर वैश्विक शक्तियों की स्त्रातेजिक एंव सामरिक गतिविधियों का केन्द्र रहता है  



हिन्द महासागर का भू-आर्थिक महत्त्व:-

 भू-आर्थिक दृष्टि से हिन्द महासागर क्षेत्र अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली क्षेत्र है वैश्विक अर्थव्यवस्था की दृष्टि से हिन्द महासागर क्षेत्र के आर्थिक कारकों को निम्नवत वर्गीकृत किया जा सकता है-

1- हिन्द महासागर क्षेत्र तथा इससे संलग्न क्षेत्र अनेक प्रकार के बहुमूल्य एंव सभी के लिए अनिवार्य रूप से आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है इस क्षेत्र के अन्तर्गत प्राकृतिक रूप से कोबाल्ट, लोहा, मैंगनीज, ताबां, एल्युमीनियम, जस्ता, चांदी, सोना, टाइटेनियम, जिरकोनियम, टिन, तांबा सहित ऊर्जा संसाधनों खनिज भरपूर मात्रा में उपलब्ध है जैसें विश्व के महत्त्वपूर्ण ऊर्जा साधन के रूप में खनिज तेल भंडार का कुल 55% तेल भंडार और 40% गैस भंडार इसी क्षेत्र में है उपरोक्त सभी प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता के कारण विश्व के सभी देशों के हित इस क्षेत्र से जुड़ जाते हैं  

2- यह क्षेत्र विश्व के संपूर्ण व्यापारिक और वाणिज्यिक गतिविधियों का प्रमुख मार्ग है इन मार्गो से लगभग 90,000 वाणिज्यिक जहाज प्रतिवर्ष 9.84 बिलियन टन माल का परिवहन करते हैं साथ ही यहाँ से विश्व व्यापार का 75% और दैनिक तेल खपत के 50% का परिवहन होता है इस तरह से हिन्द महासागर विश्व अर्थव्यस्था का सबसे  प्रमुख राजमार्ग है  

  3- हिन्द महासागर एंव इसके तट पर स्थित राष्ट्रों में विश्व की कुल जनसंख्या का 2.9 बिलियन निवास करती है   ये सभी देश उत्पादन एंव औद्योगिक दृष्टि से पिछड़े होने के कारण पश्चिम राष्ट्रों के लिए पूंजी निवेश के क्षेत्र हैं


  इन भू-आर्थिक विशेषताओं को दृष्टिगत रखते हुए केवल हिन्द महासागर क्षेत्र के देशों लिए बल्कि सम्पूर्ण विश्व के विभिन्न देशों के लिए इस क्षेत्र की स्वतंत्रता एंव सुरक्षा बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है चूँकि असुरक्षा और परस्पर अविश्वास के कारण इस क्षेत्र में संघर्ष जैसी घटनाएँ घटित होती रहती हैं अतः इस क्षेत्र का शांतिपूर्ण क्षेत्र के रूप में बने रहना ही सम्पूर्ण विश्व की शान्ति और सुरक्षा को बनाए रखने में सहायक होगा  

  उपरोक्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए हिन्द महासागर भारत की आर्थिक सुरक्षा, समृद्धि और उत्तरजीविता की जीवन रेखा है अतः इस क्षेत्र की प्रत्येक गतिविधि का सीधा सम्बन्ध भारत की सुरक्षा एंव स्थिरता को प्रभावित करती हैं  


निष्कर्ष- 

         हिन्द महासागर क्षेत्र अपनी इन्हीं मौलिक, आधारभूत विशेषताओं के कारण केवल अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति बल्कि विश्व के विकसित और शक्तिशाली राष्ट्रों की राजनीतिक, स्त्रातेजिक, आर्थिक सामरिक गतिविधियों का केन्द्र बना रहता है   हिन्द महासागर क्षेत्र में विगत 7 दशकों से चल रही बाह्य शक्तियों की विभिन्न गतिविधियों पर दृष्टिपात किया जाये तो स्पष्ट होता है किसी कोई भी शक्ति का गृह राज्य हिन्द महासागर क्षेत्र में स्थित नहीं है। इस दृष्टि से विचार किया जाये तो इस सम्पूर्ण क्षेत्र में भारत की स्थिति और भूमिका दोनों ही बहुत ही प्रभावशाली और निर्णायक सिद्ध हो सकती है परन्तु यह एक विचारणीय प्रश्न है कि जिस प्रकार इस महासागर का नाम भारत के नाम से जुड़ा है क्या वह उसी प्रकार की प्रभावशाली स्थिति, क्षमता, योग्यता और दूरदर्शिता   रखता है जैसा कि अन्य शक्तिशाली राष्ट्र अपने सामुद्रिक क्षेत्र पर तथा सम्पूर्ण विश्व के किसी भी सामुद्रिक क्षेत्र में रखते हैं महान, स्पाइकमैन तथा अन्य राजनीतिक एंव आर्थिक विशेषज्ञों द्वारा वर्णित सिद्धांतों के अनुरूप विभिन्न प्रकार के संसाधनों एंव विशेषताओं से सम्पन्न होने के बावजूद भी भारत आज भी केवल भौगोलिक रूप से बल्कि राजनीतिक, स्त्रातेजिक एंव सामरिक दृष्टि से भी एक दृष्टा राज्य के रूप में दिखाई देता है भारत सहित इस क्षेत्र के विभिन्न राष्ट्र विश्व के राजनीतिक, स्त्रातेजिक और आर्थिक समीकरणों में एक मात्र मोहरा बन कर रह गये हैं  


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4 comments:

  1. Congratulations
    Bahut achha likha hai aapne

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  2. बढ़िया अंकित!
    शुभकामनाएं

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  3. Keep doing 😊👏🏾

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